कारक किसे कहते है:- संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से उसका सीधा संबंध क्रिया के साथ पता लगे उसे कारक कहते हैं। दूसरे शब्दों में संज्ञा या सर्वनाम का वह रुप जिसके द्वारा उस वाक्य का अन्य शब्दों के साथ उसके संबंध का बोध हो, उसे कारक कहते हैं। हिन्दी भाषा में 8 कारक होते हैं- कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, संबंध, अधिकरण और संबोधन। किन्तु संस्कृत में 6 कारक होते हैं। कारक संज्ञा की कोटि का भाग है। कारक का प्रयोग समाज की तत्पुरुष समास में होता है।
विभक्ति या परसर्ग
जिन प्रत्यय शब्दों से कारक की स्थिति अर्थात उनका अन्य शब्दों के साथ संबंध व्यक्त होता है, उसे विभक्ति या परसर्ग कहते हैं। जैसे- ने, को, से, के द्वारा, को, के लिए, का, की, के, रा, री, रे, में, पर, हे!, अरे!, ओ! आदि चिह्नों को विभक्ति या परसर्ग कहते हैं।
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कारक के भेद कितने होते हैं
हिन्दी भाषा में कारक के 8 भेद होते हैं-
- कर्ता
- कर्म
- करण
- सम्प्रदान
- अपादान
- संबंध
- अधिकरण
- संबोधन
कारक के भेद- कारक के 8 भेद होते हैं, जो इस प्रकार है-
क्रम | कारक | विभक्तियाँ/चिह्न |
---|---|---|
प्रथमा | कर्ता | ने, शून्य |
द्वितीया | कर्म | को, |
तृतीया | करण | से, द्वारा, के द्वारा |
चतुर्थी | सम्प्रदान | को, के लिए |
पंचमी | अपादान | से (अलग होने का भाव, तुलना, समानता का भाव) |
षष्ठी | संबंध | का, की, के, रा, री, रे |
सप्तमी | अधिकरण | में, पे, पर |
अष्टमी | संबोधन | हे!, अरे!, अहो!, ओ!, जी! |
कारक किसे कहते है
कर्ता से लेकर अधिकरण तक के विभक्ति चिह्नों (परसर्गों) का प्रयोग संज्ञा या सर्वनाम के अंत में किया जाता है किंतु संबोधनकारक के लिए प्रयुक्त होने वाले चिह्नों का प्रयोग प्रायः शब्दों के पूर्व में किया जाता है।
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1. कर्ता कारक- ने (शून्य)
परिभाषा- शब्द के जिस रूप से क्रिया (कार्य) करने वाले का बोध हो, उसे कर्ता कारक कहते हैं। इसका विभक्ति चिह्न ने, (शून्य) है।
कर्ता अर्थात काम करने वाला। कर्ता कारक के अधिकांश प्रयोगों में किसी भी प्रकार के विभक्ति चिह्न का प्रयोग नहीं किया जाता। इस विभक्ति चिह्न के अभाव को इंगित (सूचित) करने के लिए ही कर्ता कारक की विभक्ति के रूप में 0 चिह्न का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार विभक्ति चिह्नों के आधार पर कर्ता कारक दो प्रकार के देखने को मिलते है-
- परसर्ग (विभक्ति) सहित कर्ता कारक
- परसर्ग (विभक्ति) रहित कर्ता कारक
परसर्ग (विभक्ति) सहित कर्ता कारक
- शिक्षक ने पाठ पढ़ाया।
- राहुल ने पीएचडी पूरी कर ली।
प्रेरणार्थक क्रियाओं के साथ अपूर्णभूत को छोड़कर शेष सभी भूतकालों में परसर्ग के रूप में ने का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
- मैंने उसे दिखाया।
- मैंने उसे पढ़ाया।
परसर्ग (विभक्ति) रहित कर्ता कारक
- शिवम खाता है।
- बालक पढ़ता है।
जिन वाक्यों में लगना, सकना, बकना, चूकना, भूलना, बोलना, जाना आदि शब्द आते हैं, उनमें परसर्ग के रूप में ‘ने’ शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता । किन्तु बोलना के साथ कहीं-कहीं ने का प्रयोग होता है। जैसे-
- मुझे दिल्ली जाना है।
- वह भूल गया।
2. कर्म कारक-को
वाक्य में क्रिया के कार्य का फल जिस पर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। साधारण भाषा में कहे तो जिस पर किये गए काम का प्रभाव पड़े, उसे कर्मकारक कहते हैं। कर्मकारक का विभक्ति चिह्न ‘को’ होता है। किन्तु, यह चिह्न भी कई स्थानों पर नहीं लगता है।
नियम-1 : सुलाना, बुलाना, जमाना, भगाना, पुकारना, कोसना आदि के प्रयोग में यदि कर्म संज्ञा हो, तो ‘को’ विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
- लोगों ने शेर को भगाया।
- राधा ने कृष्ण को पुकारा।
कुछ उदाहरण जिनमें विभक्ति ‘को’ का प्रयोग नहीं होता। जैसे-
- सीता फल खाती है।
- मैने पत्र लिखा।
3. करण कारक- से, द्वारा, के द्वारा
वाक्य में शब्द के जिस रूप से क्रिया के करने के साधन का बोध हो अर्थात् जिसकी सहायता से कार्य संपन्न हो, वह करण कारक कहलाता है। करण का शाब्दिक अर्थ कारण होता है। करण कारक का विभक्ति चिह्न से, द्वारा, के द्वारा होता है। लेकिन कहीं-कहीं पर के साथ और के जरिए का भी प्रयोग देखने को मिलता है। जैसे-
- भगवान राम ने रावण को बाण से मारा।
- बच्चे गेंद से खेल रहे हैं।
4. सम्प्रदान कारक- को, के लिए
सम्प्रदान का शाब्दिक अर्थ है- देना। कर्ता जिसके लिए कुछ कार्य करता है या जिसे कुछ देता है, उसे व्यक्त करने वाले शब्द रूप को सम्प्रदान कारक कहते हैं। इसका विभक्ति चिह्न को, के लिए होता है। सामान्य भाषा में कहा जाए तो जिसे कुछ दिया जाता है या जिसके लिए कोई कार्य किया जाता है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। जैसे-
- गुरुजी को फल दो।
- राजा भिक्षुक को दान देता है।
5. अपादान कारक
संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी वस्तु से तुलना, समानता, अलगाव एवं डर (भय) का भाव प्रकट होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। इसका विभक्ति चिह्न से होता है। जैसे-
- वृक्ष से पत्ते गिरते हैं।
- राम सीता से सुंदर है। [तुलना का भाव]
6. संबंध कारक
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से (सामान्यतः क्रिया के साथ) संबंध प्रकट हो वह संबंध कारक कहलाता है। इसका विभक्ति चिह्न का, के, की, रा, रे, री है। ध्यान दें- संबंध कारक के विभक्ति चिह्न संज्ञा, लिंग एवं वचन के अनुसार बदल जाते है। जैसे-
- वह कार मेरी है।
- यह मेरा घर है।
7. अधिकरण कारक
शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। अधिकरण कारक का विभक्ति चिह्न में, पे, पर होता है। इसकी पहचान किसमें, किसपर, किसपे आदि शब्दों से भी की जा सकती है। इनमें भीतर, ऊपर, अंदर, बाहर, बीच शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है।
कहीं-कहीं पर अधिकरण कारक की विभक्तियों का लोप (प्रयोग न होना) रहता है, तो विभक्ति चिह्नों की जगह पर यहाँ, वहाँ, अगले, पिछले, आसरे, किनारे, दोनों, द्वार-द्वार (पुनरावृत्ति वाले शब्द) आदि पदों का प्रयोग समय, किया जाता है। जैसे-
- टी.वी. मेज पर रखी है।
- फ्रिज के अंदर क्या है।
8. संबोधन कारक
संज्ञा शब्द के जिस रूप से किसी को बुलाने या संकेत करने का भाव प्रकट हो उसे संबोधन कारक कहते हैं। इसके विभक्ति चिह्न हे!, अरे!, अहो!, अजी!, अहा ! → आदि हैं। इसमें संबोधन चिह्न (!) का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
- ‘ऐ राकेश ! यहाँ आओ”
- “अरे अभय! कहाँ हो।”
कारक से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण तथ्य
- हिन्दी में प्रयुक्त होने वाली विभक्तियाँ विशेष रूप से सर्वनामों के साथ प्रयुक्त होकर विकार उत्पन्न करती हैं और उनमें मिल जाती हैं। जैसे- मेरा, मेरी, हमारा, हमारी, आदि।
- विभक्तियों का प्रयोग संज्ञा या सर्वनाम के साथ किया जाता है। जैसे- 1. वह कार मेरी है। 2. राधा ने कृष्ण को । पुकारा।
- विभक्तियाँ स्वतंत्र होती है और इनका अस्तित्व भी। स्वतंत्र रूप से होता है। इनका कोई अर्थ नहीं होता। क्योंकि इनका काम एक वाक्य का दूसरे शब्द से संबंध बताना होता है।
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